taliban kya hai

तालिबान क्या है? तालिबान से इतना क्यों लोग परेशान हैं सबसे पहले हम आपको बता दें तालिबान का मतलब क्या होता है तालिबान एक पश्तो भाषा का शब्द है।

परिवहन के बारे में हर जगह चर्चा हो रही है हर जगह बातें हो रही है कि तालिबान क्या है दोस्तों मैं आपको बता दूं तालिबान अफगानिस्तान पर अपना कब्जा बना लिया है और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी ने भी अपना देश छोड़ दिया है अपना पद छोड़ दिया है क्योंकि अगर मोहम्मद अशरफ घनी अपना देश नहीं छोड़ते हैं तो अफगानिस्तान में खून खराबा बहुत ज्यादा होता और अफगानिस्तान की राजधानी दुखी काबुल है वह पूरी तरह से बर्बाद हो जाती इसलिए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी ने अपना देश छोड़ दिया है और वह इस बात को इंटरव्यू के दौरान भी बताएं है। 

आजकल सारे न्यूज़ चैनल पर सारे खबरों पर तालिबान और अफगानिस्तान की खबरें अब देखते हैं सुनते हैं पढ़ते हैं तो कहीं ना कहीं आप सब के दिमाग में एक सवाल तो आता होगा कि आखिर ये तालिबान है क्या और तालिबान के बारे में इतनी चर्चा क्यों हो रहे हैं।

तो आप भी अगर तालिबान के बारे में पूरी जानकारी जानना चाहते हैं कि तालिबान क्या है? तालिबान कहां से आया है और तालिबान क्या चाहता है इसका मकसद क्या है अगर यह सारे सवाल भी आपके मन में उठ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह है इस लेख के द्वारा मैं आपको तालिबान के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश करूंगा इसलिए इस लेख के साथ बने रहे।

तालिबान कौन है ?

दोस्तों सबसे पहले हम यह जानते हैं कि तालिबान शब्द का मतलब (Taliban Meaning) क्या होता है।

तालिबान एक पश्तो भाषा का शब्द और मैं आपको बता दूं पश्तो भाषा में छात्रों को तालिबान कहा जाता है।  तालिबान आंदोलन जिसे हम लोग तालिबान या फिर तालेबान के भी नाम से जानते हैं।  तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक अधारवादी आंदोलन है और यह सन 1994 में दक्षिण अफगानिस्तान में इसकी शुरुआत हुई थी। 

तालिबान को पश्तून भाषा में “छात्र” बोलते हैं ।  ऐसे छात्र जो कि इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर चलते हैं और इसको इस्लामिक के कट्टरपंथी राजनीतिक आंदोलन भी कहा जाता है और इसकी मेंबरशिप पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़ने लिखने वाले छात्रों को मिलती है।

एक तरफ हम 15 अगस्त 2021 को अपने देश के लिए जश्न मना रहे थे और राष्ट्रीय गीत गा रहते हैं खुशी मना रहे थे वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान पूरी तरह से तालिबान के हाथ में चला गया। 

तालिबान के लड़ाके अफगान राजधानी काबुल पर अपना घेरा जमा रहे थे उसे अपने कब्जे में करना चाह रहे थे अफगान की जो नागरिकों की आजादी है उन पर अपना हक जताने की कोशिश कर रहे हैं और इसकी शुरुआत 3 महीने पहले हो चुकी थी इसमें कंधार, हैरात, कुंडूज, जलालाबाद, ब्लाक समेत अफगानिस्तान के बाकी हिस्से पर एक एक करके तालिबान ने अपना कब्जा जमा लिया था लेकिन इतनी जल्दी राजधानी काबुल पर हलचल होने वाली है यह किसी को नहीं पता था।

रविवार की सुबह जो हम अपने देश के लिए जश्न मना रहे थे उसी वक्त तालिबान के लोगों ने अचानक से काबुल पर अपना डेरा जमा लिया और अफगान के सरकार मोहम्मद अशरफ गनी और उनके साथ जितने भी सैना थे वह सब तालिबानओ से बिना मुकाबला किए खुद को सरेंडर करते हुए दिखी। 

15 अगस्त को रविवार को सुबह सुबह तालिबान लड़ाके काबुल शहर पर मशीन कानों और रॉकेट लॉन्चर से इस शहर को अपने कब्जे में करते गए बगराम एयर बेस, बगराम जेल पर सारे तालिबान ने अपना कब्जा जमा लिया था और इसी के साथ-साथ काबुल शहर में एंट्री गेट और आसपास के ऐसे कई सारे इमारतों को धीरे-धीरे करके तालिबान के लड़ाके अपने कब्जे में लेकर गए और शाम होते होते तक अफगान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी ने शहर छोड़ कर चले गए।

और इसी के बाद तालिबान का जो हेड था उसने एलान किया कि हमारे जितने भी लड़ाके काबुल शहर में घुसकर कान अवस्था और सारे पुलिस चौकियों को संभालने के लिए जा रहे हैं। 

हालांकि तालिबान ने यह भी कहा है कि सेना और आम नागरिकों को हम सुरक्षा प्रदान करेंगे और किसी से भी बदला नहीं लिया जाएगा लेकिन इसके बावजूद भी काबुल छोड़कर जाने वाली की संख्या बहुत बढ़ गई थी शहर से बाहर जाने वाले सड़कों पर उतर आए थे और काफी ट्रैफिक भी जाम दिखा।

इतनी भी लोग वहां पर मौजूद थे उन सब ने तालिबान के शासन में रहने से अच्छा इस शहर से दूर जाना पसंद किया। 

तालिबान का शुरुआत कैसे हुआ?

हम बात करते हैं कि तालिबान की शुरुआत कैसे हुई दोस्तों तालिबान की शुरुआत साल 1980 की दहाई में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपनी फौज को लाया था तब उसी समय अमेरिका ने ही उन लोगों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग करने के लिए बढ़ावा दिया था लेकिन सोवियत संघ तो हार मन कर चला गया लेकिन उसी क्षण अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का शुरुआत हो गया था।

पाकिस्तान का कहना है कि तालिबान की शुरुआत में हमारा कोई हाथ नहीं है लेकिन तालाबानियों ने पाकिस्तान के मदरसों में अपनी शिक्षा ली थी। 

पाकिस्तान वाले इस बात से साफ मना करते हैं कि तालिबान की शुरुआत में हमारा कोई हाथ था लेकिन हम सभी जानते हैं की तालिबान की शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में अपनी शिक्षा ली और ताजा लड़ाई में भी पाकिस्तान तालिबान की पूरी तरह से मदद कर रहा है और इसी वजह से अफगानिस्तान के लोग पाकिस्तान के खिलाफ प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान तालिबान को बढ़ावा दे रही है उसकी मदद कर रही है।

1994 के साल में ओ मारने इसी कंधार में तालिबान ओं को बनाया था तब उनके पास सिर्फ 50 समर्थक थे जो तबीयत काल के बाद ग्र गृहयुद्ध के समय के दौरान अस्थिरता, अपराध और भ्रष्टाचार में बर्बाद होते अबकी स्थान को बचाना चाहते थे। 

धीरे धीरे यह पूरे देश में तेजी से चलने लगा 1995 सितंबर में उन्होंने ईरान से लगे हैरात (Herat) पर अपना कब्जा जमाया और फिर उसी के अगले साल 1996 सितंबर के महीनों के दौरान कंधार को अपने कंट्रोल में कर लिया और इसी के साथ-साथ राजधानी काबुल पर भी अपना कब्जा जमा लिया।  इसी के बाद तालिबान ने राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को उनके कुर्सी से भी हटा दिया था रब्बानी अफगानिस्तान मुजाहिद्दीन के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने सेवियर ताकत का विरोध किया था और यह वह नहीं चाहते थे की किसी भी तरह का सैयद ताकत अफगानिस्तान में अपना कब्जा बनाए रहे और 1998 के साल में करीबन 90% तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया था। 

साल 2001 के अफगानिस्तान युद्ध के बाद यह तालिबान मानो लुप्त ही हो गए थे लेकिन 2004 के बाद इन्होंने अपना गतिविधियों को बढ़ा दिया और दक्षिण अफगानिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिए।  2009 के फरवरी में तालिबान ने पाकिस्तान को उत्तर पश्चिमी सरहद के करीब स्वात घाटी में पाकिस्तान सरकार के साथ एक समझौता भी किया था जिसके तहत वह लोगों को मारना बंद करेंगे और उनके बदले उन्हें शरीयत के अनुसार काम करने की छूट मिलेगी यह समझौता हुई थी। 

20 साल के बाद इतना मजबूत कैसे हो गया तालिबान (Taliban)

2001 मैं जब अमेरिकी और मित्र सेनाओं की शुरुआत की कार्रवाई हुई थी उससे पहले ही तालिबान सिर्फ पहाड़ी इलाकों तक अपना बसेरा जमाई रहते थे लेकिन 2012 में NATO बेस पर हमले होने के बाद फिर से तालिबान अपना आतंक दिखाना शुरू कर दिया था।

2015 में तालिबान ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कुंदूज इलाके पर अपना हक और कब्जा जताना शुरू कर दिया था और यह करके वह वापसी के संकेत भी दे दिए था और यह एक ऐसा वक्त था जब अमेरिकी में सेनाओं की वापसी की मांग बहुत जोरों शोर से चल रही थी। 

इसी तरह अफगानिस्तान में अमेरिकी की रुचि कम होती गई और तालिबान अपना जगह मजबूत बनाते गए इसी के साथ पाकिस्तानी आतंकी संगठनों पाकिस्तान की सेना और आईएसआई (ISI) की अंदरूनी तरह से मदद से पाकिस्तान की सीमा से सटे जितने भी इलाके थे तालिबान ने उन इलाकों में अपना बेस मजबूत करना शुरू कर दिया था।

बीबीसी (BBC) की रिपोर्ट में NATO आकलन के हवाले से यह दावा किया गया है कि तालिबान पहले से अब बहुत ही मजबूत हो गए हैं और इसके अंदर 85 हजार लड़ाके शामिल हैं तो इससे आप यह समझ सकते हैं कि तालिबान की सेना कितनी बड़ी है। 

अफगानिस्तान का बहुत सारा हिस्सा तालिबान के हाथों में अब चला गया है और यह समझना बहुत मुश्किल है की तालिबान ने अफगानिस्तान पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमाने की कोशिश में है लेकिन यह 20 से 30% तक हो सकता है।

करीबन 20 सालों तक ऐसे जंग के बाद अमेरिकी जैसी महाशक्तिशाली सेना ने अपने हाथ यहां से पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं और इससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि तालिबान अब और भी मजबूत होने वाले हैं और तालिबान इसे अपनी जीत समझ रहे हैं इसी वजह से तालिबान अब बहुत ही तेरी से आगे बढ़ते जा रहे हैं और अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमाते जा रहे हैं। 

15 अगस्त 2021 मैं यह वह तारीख है जिस दिन पूरी दुनिया चुपचाप होकर ही यह देखती रह गई और तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल समेत पूरे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया।

यह एक हार है यह हार सिर्फ अफगानिस्तान के लोगों के लिए नहीं है बल्कि यह हार अमेरिकी सेना के लिए भी है क्योंकि अफगानिस्तान मैं अमेरिकी कि 20 साल तक तालिबान से लड़ाई होती रही है और अमेरिकी ने बहुत अरबों डॉलर रुपए खर्च किए थे इस जंग में लेकिन फिर अचानक से अमेरिकी ने अपने हाथ पीछे कर लिए और तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया कहीं ना कहीं यही एक वजह है कि अब पूरी दुनिया अमेरिका पर सवाल उठा रही है। 

अफगानिस्तान की लोगों में तालाबानियों से फिर वही खौफ क्यों?

15 अगस्त 2021 रविवार को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर अपना कब्जा जमा लिया है और इस वजह से अफरा तफरी काफी मर चुकी है अफगानिस्तान के जितने लोग हैं वह सब अपने सेट कर कर भाग रहे हैं।  20 सालों के बाद सत्ता में फिर से लौटे तालिबान को लेकर आम लोगों में इतना खौफ क्यों है आइए हम इसके बारे में जानते है।

1998 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करके देश भर में अपना शासन शुरू कर दिया था तो उस वक्त तालिबान ने ऐसे कई सारे फरमान जारी किए पूरे देश में शरिया कानून भी लागू किया गया था और उस कानून को ना मानने वाले लोगों को सजा भी मिलती थी। 

जो भी गलती करते थे या फिर इस कानून को नहीं मानते थे या विरोधी लोगों को चौराहे पर लटकाया जाने लगा और हत्या और यौन अपराधों से जुड़े मामलों में आरोपियों को सड़क पर ही सजा देना शुरू कर दिया गया और उन आरोपियों को सड़क पर ही हत्या की जाने लगी चोरी करने के आरोप में पकड़े जाने पर शरीर के कई सारे अंग को काट दिए जाते थे और लोगों को कोड़े मारने जैसी नजारे सड़क पर आम सी हो गई थी।

वहां जितने भी आम जनता उन लोगों के लिए ऐसा दृश्य देखना बहुत ही आम हो गया था और ऐसा दृश्य देखना बहुत ही दर्दनाक और डरावना भी होता था इस वजह से अफगानिस्तान के आम लोगों के बीच में तालिबानियों से फिर से वही खास मन में आने लगा वही डर आने लगा क्योंकि इस बार फिर तालिबान अपना हुकूमत जताना शुरू कर देंगे तो फिर से वही फिर से सड़कों पर दिखना आम हो जाएगी। 

तालाबानियों के द्वारा लगाई सामाजिक प्रतिबंध

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तून इलाकों में तालिबान ने यह वादा किया था कि वह अगर सत्ता से वापस लौटते हैं तो वह सुरक्षा और शांति बनाए रखेंगे।

वह इस्लाम के द्वारा बने साधारण शरिया कानून को लागू करेंगे और शांतिपूर्वक से रहेंगे लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ कुछ ही समय में तालिबान लोगों के लिए बहुत बड़ी परेशानी बन गई।

तालिबान (Taliban) के द्वारा शरिया कानून के द्वारा महिलाओं पर कई तरह की कड़ी पाबंदियां भी लगा दी गई थी।  सजा देने के विभिन्न तरीकों के कारण अफगानी समाज में इसका विरोध होने लगा था।

चलिए हम जानते हैं उन सामाजिक प्रतिबंधों के बारे में जो तालिबान के लोगों ने अफगानिस्तान के लोगों के लिए लगाई थी।

● तालिबान ने शरिया कानून के मुताबिक अफगानी पुरुषों के लिए बढ़ी हुई दाढ़ी का फरमान जारी किया था और जिस पुरुष इसका उल्लंघन करते हैं उसको सजा भी देने का ऐलान किया था और औरतों में बुर्का पहनने का फरमान जारी किया था। 

● तालिबान ने टीवी, सिनेमा, म्यूजिक इन सारी चीजों पर पाबंदी लगा दी थी और 10 साल की लड़कियों को स्कूल जाने के लिए भी मना कर दी थी। 

● तालिबान ने 1996 मैं शासन में आने के बाद औरत और पुरुष के लिए कानून बनाना शुरु कर दी थी और इस कानून में औरतें काफी प्रभावित हुई थी। 

● तालिबान ने यह भी कानून बनाया कि अफगानी महिला को नौकरी करने की इजाजत भी नहीं दी जाएगी। 

● तालिबान ने लड़कियों के लिए स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी जाने के लिए साफ मना था। 

● किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं को बाहर जाने के लिए मना किया गया था अगर कोई महिला अपने किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना बाहर जाती थी तब उसका बहिष्कार किया जाता था। 

● तालिबान ने यह भी कानून बनाया पुलिस डॉक्टर द्वारा चेकअप कराने पर महिलाओं का बहिष्कार किया जाएगा और महिलाओं को डॉक्टर या नर्स बनने पर भी पाबंदी थी। 

● तालिबान के किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर खासकर महिलाओं को निर्दयता से पीटा जाता था और मारा जाता था। 

● तालिबान के द्वारा जो भी कानून या फिर आदेश दिए जाते थे वह सब औरतों के लिए बहुत परेशानी हुई करती थी और इस वजह से अफगानिस्तान के 95% औरतें डिप्रेशन का शिकार हो गई थी। 

FAQ on Taliban in Hindi

Q1. तालिबान का क्या मतलब है?
तालिबान एक पश्तो भाषा का शब्द है तालिबान का मतलब छात्र होता है और इससे संगठन के सदस्यों की और एक इशारा किया जा रहा था जिन्हें उमर का छात्र माना गया है।  साल 1994 के उमर उबर ने इसी कंधार में तालिबान को बनाया था।
Q2. क्या तालिबान एक देश है?
तालिबान आंदोलन जिसे हम तालिबान या फिर तालेबान के नाम से भी जानते हैं यह एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आंदोलन है जिसकी शुरुआत तकरीबन 1994 में दक्षिण अफगानिस्तान में हुई थी।  तालिबान एक पश्तो भाषा कसम है इसका मतलब “छात्र” होता है।
Q3. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति कौन है?
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी है।

Conclusion

तालिबान क्या है तालिबान इतनी खतरनाक क्यों है तालिबान की शुरुआत कैसे हुई यह सब आज मैंने आपको इस लेख के माध्यम से बताने की कोशिश की है मुझे आशा है कि आपको पसंद आई होगी।

दोस्तों 15 अगस्त 2021 को रविवार के दिन तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर पूरा कब्जा जमा लिया है और यह दिन पर दिन अपना कब्जा जमाया जा रहा है और अफगानिस्तान के लोग इस शहर को छोड़कर चले जाना चाहते हैं क्योंकि तालिबान के शासन मैं रहने से अच्छा है कि इस शहर को छोड़कर चले जाएं।

इस वजह से रविवार 15 अगस्त को अफगानिस्तान के सड़क पर बहुत भीड़ देखी गई थी।

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